तुम आओ तो सही.........
मुझे आकर फिर से अपना बनाओ तो सही
में सह लुंगी सारे सितम ज़माने के
तुम मुझे अपना बनाओ तो सही
छू लो मुझे तुम साये की तरह
लिपट जाओ मुझसे झुकी हुई शाख की तरह
गले मेरी रूह को अपने लगाओ तो सही
जिस्म जलता है कतरा कतरा करके
बुझी राख़ सा मुझे बनाओ तो सही
भटकती रहती हूँ, रूह बनकर इस घर मै
अपने जिस्म के घर में मुझे बसाओ तो सही
साथ चल दो तुम, बस कदम दो कदम
मंजिल की किसे फिक्र है
तुम दीवारों को ही सही
मेरा घर बनाओ तो सही
खामोश तुम भी हो
अक्सर खामोश मैं भी रह जाती हूँ
आज चंद लफ्जो से मेरे गीत को
मेरे साथ गुनगुनाओ तो सही!
Ekant Puri
वाह वाह - अति सुंदर
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